हरियाणा।पर्यावरण दिवस मनाने का औचित्य तभी पूरा होगा जब हम सचमुच में अपने आप को पर्यावरण के प्रति समर्पित करेंगे---सीमा रंगा इंद्र
हरियाणा-- पर्यावरण दिवस मनाने का औचित्य तभी पूरा होगा जब हम सचमुच में अपने आप को पर्यावरण के प्रति समर्पित करेंगे।सभी पेड़- पौधे लगाएंगे ,पर्यावरण के प्रति सजग हो जाएंगे, साफ-सफाई रखेंगे और सबसे बड़ी समस्या प्रदूषण है जिसका सभी को ध्यान रखना होगा क्योंकि प्रदूषण प्रकृति नहीं फैला रही प्रदूषण हमारे द्वारा, हमारे वाहनों द्वारा, हमारी दैनिक क्रियाओं द्वारा हम धरती को प्रदूषित कर रहे हैं। जब तक प्रदूषण जारी रहेगा हमारा पर्यावरण दिवस मनाने का कोई फायदा नहीं होगा। पर्यावरण को सुंदर बनाए रखना और प्रदूषण से रहित बनाए रखना हमारा लक्ष्य होना चाहिए ।जिससे हमारा देश तरक्की करेगा प्रदूषण ने अपने पैर चारों तरफ फैला लिए हैं ।बड़े-बड़े महानगरों में ऐसे हालात है कि सांस लेने में भी तकलीफ होती है । सूरज जल्दी छिप जाता है।इसलिए हमें दैनिक कार्यों में गाड़ियों का प्रयोग जितना हो सके उतना कम करें ।प्रकृति को बचाने के लिए कार्य करें । बहुत सारे लोगों ने अपने दैनिक जीवन में पेड़- पौधे लगाने का कार्य जारी रखा है और पर्यावरण के प्रति बहुत ही सजग हैं और अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं।हमें जीवन में प्रतिदिन पेड़ -पौधों को अपने साथ लेकर चलना होगा ।जैसे हम खाने के बिना नहीं रह सकते ।वैसे ही पेड़- पौधे के बिना भी हमारा जीवन अधूरा है। जैसे हमें जीवित रहने के लिए भोजन -पानी की आवश्यकता है वैसे ही प्रकृति को जिंदा रखने के लिए पेड़- पौधे ,साफ- सफाई ,प्रदूषण रहित धरा बनाने की आवश्यकता है। जलवायु प्रदूषण को रोकना होगा और वृक्षों की कटाई पर रोकनी होगी। कटाई की जगह वृक्षों को लगाना होगा जिससे कि प्राकृतिक आपदा से हम बच सकें। पर्यावरण को बचाना, प्रकृति को बचाना हमारे हाथ में है।अगर हम कम दूरी के लिए साइकिल का प्रयोग करें तो इससे प्रदूषण तो कम होगा ही साथ में पैसों की बचत भी होगी। बाकी आप अपने हाथ से बीज लगाकर और उसे बड़ा होते देख। प्रतिदिन उसकी देखभाल कर पानी देते हैं ।जैसे-जैसे पत्ते आएंगे आपका प्रसन्नता 4 गुना होगी और प्रतिदिन आप उठ कर देखेंगे कितने बड़े हो गए हैं पत्ते और कितने न आ गए हैं। जब वही पौधा बड़ा हो जाएगा तकरीबन 1 वर्ष या 2 का होने पर जब उसके फल लगने लग जाएंगे। उस खुशी का कोई ठिकाना नहीं होता।जब आप फल खाएंगे तो जो स्वाद आपको आएगा ।लाखों रुपए के फल खरीद के भी नहीं मिल सकता । मैंने भी बहुत पेड़- पौधे लगाए हैं जब मैं फल तोड़ती हूं उस खुशी को मैं बयां नहीं कर सकती ?मेरे पास शब्द नहीं होते ,उस खुशी को लिखने के लिए ।जब हम ऐसे कार्य करते हैं तो हमें देख कर दूसरे भी वैसा ही कार्य करते हैं ।अपने बगीचे में गिलोय को लगाया हुआ है तो प्रतिदिन 5 से 10 लोग गिलोय लेने के लिए आते हैं। बड़ा अच्छा लगता है कि हमारे लगाए पौधे किसी के कुछ काम आ रहे हैं ।कोई पपीते के पत्ते, कोई पुदीना ,ऐसे ही बहुत सारे पेड़- पौधों मेरे पास लेने के लिए आते हैं।मन प्रसन्न हो जाता है । हम किसी के काम आ रहे हैं।अगर हम सांस ले रहे हैं तो हमारा फर्ज बनता है कि प्रकृति को बदले में पेड़ और साफ सफाई दें ताकि आने वाली पीढ़ी हमें याद रखें कि उनके लगाए पेड़ के फल खा रहे हैं। लकड़ी मिल रही है । छांव मिल रही है। सबसे बड़ी बात उस खुशी को मैं बयां नहीं कर सकती। चिड़िया ,कोयल, कबूतर, तोता, गिलहरी आते हैं। पक्षियों की ची- ची से वातावरण में मधुर संगीत गूंजने लगता है।
 गर्मियों के मौसम में कुछ पल पेड़ के नीचे शुद्ध हवा का आनंद लेने में जो मजा है वह आनन्द हमें किसी एसी से नहीं मिल सकता।
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