एक हमसफ़र ऐसा भी( सच्चा प्यार)
 क्या हुआ मुझे दिया नहीं कभी लाखों का हार,
 पर जीवन के हर पल को माला में संजोया है।
क्या हुआ मुझे कभी दिया नहीं कीमती उपहार*
 *पर अपने जीवन के कीमती पल मेरे नाम किए हैं*
 क्या हुआ कभी मुझे महंगी साड़ी गिफ्ट नहीं की
 पर हमारे रिश्तो को एक- एक धागे  में पिरोए रखा है।
 क्या हुआ ऊंचे महलों में नहीं बिठाया कभी हमें 
पर छोटे से घर की एक- एक ईंट में प्यार भर दिया है।
 क्या हुआ कभी हम गए नहीं विदेश घूमने तो
 स्वदेश के हर सुनहरे संगीत से रूबरू करवाया है ।
कभी किया नहीं झूठा वादा कि ताज महल बनवा दूंगा* 
*पर घर के एक कोने में सुंदर सा कमरा हमारे नाम किया है*
क्या हुआ कभी हम धन- दौलत से भरा नहीं हमारा घर*
 *प्यार भरपूर देकर हमें रहीश बना दिया है*।
 दुनिया से अलग है मेरे हमसफर झूठे वादे करते नहीं
 मुझे हमेशा खुश रखते हैं हमारे लिए वही काफी है।
 *देख दुनिया जिन से सीख ले दुनिया ऐसा हमसफर मेरा है। *तभी तो खुदा से सातों जन्म मांगती तुझको हूं।
(लेखिका-सीमा रंगा इन्द्रा हरियाणा)
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