रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अपने अंतिम समय अंग्रेजों के हाथों पकड़ी गईं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया। उस युद्ध के दौरान एक गोला झलकारी को भी लगा और 'जय भवानी' कहती हुई वे जमीन पर गिर पड़ीं। ऐसी महान वीरांगना थीं झलकारी बाई। मृत्यु : 4 अप्रैल 1857
झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है। झलकारी बाई के सम्मान में सन् 2001 में डाक टिकट भी जारी किया गया। भारत की संपूर्ण आजादी के सपने को पूरा करने के लिए प्राणों का बलिदान करने वाली वीरांगना झलकारी बाई का नाम आज भी इतिहास के पन्नों में अपनी आभा बिखेरता है।
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वीरांगना झलकारी बाई के बारे में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की पंक्तियां...
जाकर रण में ललकारी थी,
वह तो झांसी की झलकारी थी।
गोरों से लड़ना सिखा गई,
इतिहास में झलक रही,