रक्षाबंधन बौद्धों को क्यों नहीं मनाना चाहिए- मिलिंद बौद्ध
 वर्ण व्यवस्था के अनुसार रक्षाबंधन ब्राम्हणों का त्यौहार है। इतिहास काल से ब्राम्हण द्वारा क्षत्रियों को रक्षा सूत्र बांधा जाता रहा है व उन्हें ब्राम्हणों की रक्षा की सपथ दीलाई जाती रही है। 'हिन्दु धर्म का इतिहास व दर्शन' के चौथे खण्ड में भारत रत्न काणे लिखते है- 'आज उसका स्वरूप थोड़ा बदल गया है। आज वे (ब्राम्हण) सभी के घरों व दुकानों में जाकर उन्हें तथाकथित रक्षासूत्र (जो कि वास्तव में एकसुत्र है) बाँधते हुए देखे जा सकते है। और जब वे यह बन्धक सूत्र बाधते होते है तो  निम्न श्लोक भी पढ़ते है, 
*एन बन्धो बलि राजा दान विन्द्रम् महाबली, एन तम् बन्धामि, माचल... माचल... माचल.*.

*अर्थात्* - _जिस प्रकार तुम्हारे दानवीर बलिराजा को हमारे पूर्वजों ने बन्दी बनाया उसी प्रकार हम तुम्हें भी (मानसिक रूप से) बन्दी बना रहे है । हिलो मत... हिलो हिलो मत.._
 ( यानि जैसे थे वैसे ही रहो, अपनी स्थिती सुधारने का प्रयास मत करो)।' 
कहकर वे शूद्रों से दान के नाम पर धन भी इकट्ठा करते हैं। उल्लेखनीय है कि ब्राम्हण दान प्राप्त करते है परंतु श्रावण पूर्णिमा का यही एक ऐसा दिन होता है जिस दिन वे स्वयं दान देते है। यह परम्परा आर्य-शूद्र संघर्ष के दिनों से चली आ रही है। आज भी वे विरोधि लोग यहाँ के गरीब मूल निवासियों से ही रक्षा बंधन के नाम पर दान स्वरूप इकट्ठा कर के उन्हीं (मूल निवासियों) के पतन हेतु अपने मातृ संगठनों को दान / सहायता देकर उन्हें मजबूती प्रदान करते है। यह भाई-बहनों का त्यौहार नहीं है। यदि ऐसा होता तो मुसलमान बहनें, ईसाई बहनें एवं अन्य धर्मिय बहनें अपने-अपने भाईयों को राखियाँ बाँधती होती, लेकिन ऐसा नहीं होता है। हमें रक्षा बंधन के नाम पर पैसों की बरबादी और राखी बनाने / बेचने वाले 'धनियों की आबादी का काम नहीं करना चाहिए। आज भी कुछ अज्ञानी अम्बेडकरवादी लोग जिन्होंने अबौद्ध देवी-देवताओं को घर से नहीं निकाला है और बुद्ध-बाबा साहब भी उन्हीं के साथ रखा है उन्हें इन सबकी प्रतिमाओं पर धागे की राखियाँ बाँधते हुए देख जा सकता है यह कोरा अंधविश्वास और धम्म विरोधी आचरण है। कृपया इसे बंद करे और अबौद्ध प्रतिमाओं को भी हटाएँ ।

*बाबा साहेब के सपनों का संस्कारित बौद्ध समाज बनाने के लिए बौद्धों को अंधविश्वासी रक्षाबंधन नहीं मानना चाहिए*
 *संदर्भ* :- _पारिवारिक धम्म संगोष्ठि मार्गदर्शिका
 लेखक मिलिंद बौद्ध भोपाल 
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