एक सफर गरीबी घर से निकले पढ़ाई कर आई ए एस अफसर बन कर रिटायर होने पर फिल्म निर्माण व डायरेक्टर बनकर कर रहे समाज सेवा।

फिल्म 'द बैटल ऑफ भीमा कोरेगांव' का निर्देशन कर सेवानिवृत्त  आईएएस रमेश थेटे ने दलित समाज को जागरूक करने का कर रहे हैं कार्य ।

भोपाल(पंचमहलकेसरी9425734503)भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) से सेवानिवृत्त होने के एक दिन बाद रमेश थेटे ने कहा कि आने वाली फिल्म 'द बैटल ऑफ भीमा कोरेगांव' का निर्देशन कर रहा हूं। उन्होंने कहा कि इस फिल्म में जाने माने अभिनेता अर्जुन रामपाल मुख्य भूमिका निभा रहे हैं और यह फिल्म सामाजिक बदलाव के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करने जा रही है।मैं खुलासा कर रहा हूं कि  इस फिल्म का डायरेक्टर हूं।’’ थेटेजी ने कहा कि यह फिल्म ईस्ट इंडिया कंपनी के पांच सौ महार दलित सैनिकों व मराठा पेशवा शासकों के बीच लड़ाई की असली कहानी पर आधारित है। फिल्म में एक सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका भी निभा रहे हैं।भारत में 20 करोड़ दलित हैं अगर उनमें से सिर्फ दो करोड़ फिल्म देखते हैं तो वे दुखी होंगे कि उनके पुरखों के साथ कैसा बर्ताव किया गया  उन्हें किस प्रकार की क्रूरता का शिकार होना पड़ा था।थेटे ने कहा कि यह फिल्म जातिहीन और वर्गहीन समाज के लिए एक तरह की क्रांति लाने जा रही है तथा न्याय की भावना को बढ़ावा देगी।इस फिल्म में मजदूर करने वाले से लेकर दलित समाज चिंतक तीनहजार लोगों ने अपनी खून-पसीने से मेहनत कर के कमाई लगा दी है। यह फिल्म जनभागीदारी से बनाई जा रही है।इस फिल्म  मैंने गीतकारों व गाया भी है लिखा भी है थेटे ने ईमानदारी बिना गुलामी के अपनी सेवा के दौरान दलित होने के लिए भेदभाव का खामियाजा भुगतना पड़ा। 1993 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ने कहा,दलित शूद्र होने के नाते मुझे सताया गया। मेरे करियर के दौरान मेरे खिलाफ दर्जनों मनुवादी व्यवस्था वालों ने झूठे मामले दर्ज कराए गये, लेकिन इनमें मेरी जीत हुई। मैं बेदाग रहा मुझे विश्वास था मेरे साथ मेरा दलित समाज चिंतक,डाबीआरअम्बेडकर जी के संविधान व मेरे माता-पिता उसके संघर्ष का आशीर्वाद प्राप्त हैं मध्यप्रदेश पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के सचिव और आयुक्त पद से सेवानिवृत्त थेटे ने कहा मैं एक पदोन्नत आईएएस अधिकारी नहीं था, लेकिन, मैं न तो कलेक्टर बन सका और न ही प्रमुख सचिव क्योंकि मैं दलित शूद्र हूं।वह लोग दलितों के साथ न्याय नहीं करना चाहते। वे सिर्फ उनका इस्तेमाल करना चाहते हैं, उनका वोट हासिल करना चाहते हैं और फिर दलितों का शोषण करके अपने एजेंडे को लागू करते हैं।इस विचारधारा से सहमत नहीं हूं। अन्याय व जाति भेदभाव का विरोध क्यों नहीं किया, तो इस पर थेटे ने कहा कि मैंने एक लंबी लड़ाई लड़ी है, जिसके लिए वह करीब तीन साल तक सेवा से बाहर रहे।अलग-अलग मंचों से सामाजिक लोकतंत्र के लिए काम करने जा रहा हूं, जहां समाज में ब्राह्मण  दलित के साथ समान व्यवहार किया जाता है। दोनों को न्याय मिलना चाहिए।सेवानिवृत्त होने पर कहा उन्हें अपनी सेवा के दौरान भेदभाव का सामना करना पड़ा था। इसलिए समाज में दलित समाज चिंतक रमेश थेटे रिटायर होने के बाद समाज को जागरूक करने का काम कर रहे हैं। 

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